Saturday, July 27, 2024
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Bharat Ratna 2024-Karpoori Thakur : मरणोपरांत कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित किया जायेगा , जानिए कर्पूरी ठाकुर के बारे में सब कुछ

Bharat Ratna – Karpoori Thakur:बिहार के समाजवादी नेता स्वर्गीय श्री Karpoori Thakur की स्वर्ण जयंती के अवसर पर केंद्र सरकार द्वारा उन्हें भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किए जाने का निर्णय लिया गया है। केंद्र सरकार के इस निर्णय को विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के द्वारा स्वागत किया जा रहा है। बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने इस निर्णय को स्वागत करते हुए कहा है कि उनकी बरसों पुरानी मांगे भारत सरकार ने पूरी कर दी है। इससे समाज के पिछड़ा वर्ग दलित उपेक्षित वर्ग में एक अच्छा संदेश जाएगा। इसी प्रकार से अन्य राजनीतिक दल के द्वारा भी इस निर्णय को स्वागत किया जा रहा है।

Bharat Ratna 2024 Karpoori Thakur जन्म एवं परिचय  

Bharat Ratna 2024 Karpooi Thakur का जन्म 24 जनवरी 1924 को तत्कालीन दरभंगा जिले के पितौझिया गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम गोकुल ठाकुर  और  माँ का नाम  रामदुलारी देवी है . उनके पिता गांव के सीमांत किसान थे। अपने पारिवारिक पैसा नई का काम किया करते थे। 1972 में समस्तीपुर को एक अलग जिला बना दिया गया। उसके बाद यह गांव भी समस्तीपुर जिला के अंतर्गत आ गया। इस गांव का नाम बदलकर कर्पूरी ग्राम कर दिया गया।

Bharat Ratna 2024 Karpoori Thakur , Ex CM,BiharI
Bharat Ratna 2024 Karpoori Thakur , Ex CM,Bihar
Image – Social media

Karpoori Thakur हमेशा सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ते रहे। उनकी लोकप्रियता के कारण उन्हें बिहार में जननायक के रूप में जाना जाता है। कर्पूरी ठाकुर की पहचान एक शिक्षक स्वतंत्रता सेनानी तथा राजनीतिज्ञ के रूप में रही है। बिहार के उपमुख्यमंत्री तथा दो बार मुख्यमंत्री बने थे। उन्हें बिहार में सामाजिक चेतना जगाने वाले नेता के रूप में जाना जाता है।

वह एक नाई परिवार से आते हैं। नाई समाज बिहार के पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखता है। उन्हें कांग्रेस के खिलाफ राजनीति करने के रूप में जाना जाता है। यहां तक कि आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी भी उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकी थी।

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Karpuri Thakur in Poltics
Karpuri Thakur in Poltics ,social media

Karpoori Thakur in Poltics

Karpuri Thakur in Poltics:1970 में पहली बार 22 दिसंबर 1970 को पहली बार मुख्यमंत्री बने लेकिन यह कार्यकाल उनका मात्र 163 दोनों का रहा। 1977 में जब जनता पार्टी की लहर थी उसे समय जनता पार्टी को भारी जीत मिली थी और कर्पूरी ठाकुर दूसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। यह कार्यकाल भी उनका मात्र 2 साल का रहा था।

अपने संक्षिप्त कार्यकाल में गरीबों पिछड़ों अति पिछड़ों के हक में कई ऐसे काम किए, जिससे बिहार की राजनीति में भूचाल आ गया कर्पूरी ठाकुर की लोकप्रियता में जबरदस्त इजाफा हुआ। समाजवाद का एक बड़ा चेहरा बनकर उभरे।
लाल यादव और बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार,कर्पूरी ठाकुर के काफी करीब रहे। Karpoori Thakur से ही राजनीति की एबीसीडी सीखी। इन दोनों मुख्यमंत्री ने भी अपने-अपने कार्यकाल में सामाजिक न्याय के लिए काम करते रहे।

Karpoori Thakur राजनीति में गिने चुने चेहरों में एक हैं जिन्हें वर्षों तक भुलाया  नहीं जा सकता। हमेशा सामाजिक चेतना जगाने वाले नेता के रूप में याद किया जाएगा। बिहार में दो बार मुख्यमंत्री रहे अपना कार्यकाल में कभी पूरा नहीं कर सके। पहली बार 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 तक दूसरी बार 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 तक मुख्यमंत्री के पद पर आसीन रहे। उन्होंने पहली बार विधानसभा का चुनाव 1952 में जीता था। उसके बाद जब तक राजनीति में रहे एक भी चुनाव उन्होंने नहीं हारा।

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Karpuri Thakur in Poltics
Karpuri Thakur in Poltics ,social media

 Karpoori Thakur के द्वारा लिए गए महत्वपूर्ण निर्णय 

  • उन्होंने अंग्रेजी के अनिवार्यता को खत्म किया था। कारण उनकी खूब आलोचना हुई थी। दौरान अंग्रेजी में फेल मैट्रिक पास लोगों को कह कर मजाक उड़ाया जाता था कर्पूरी डिवीजन से पास हुए हो।
  • 1971 में मुख्यमंत्री बनने के बाद किसानों को बहुत बड़ी राहत दी थी। उन्होंने किसानों की गैर लाभकारी जमीन की मालगुजारी टैक्स को बंद कर दिया था।
  • 1977 में जब वह दूसरी बार मुख्यमंत्री बने सरकारी नौकरियों में आरक्षण को लागू किया था। इसके कारण समाज के सवर्ण वर्ग अपना दुश्मन मानने लग गए।
  • राज्य के कर्मचारियों के लिए समान वेतन आयोग को भी लागु करने का निर्णय लिया था ।लेकिन इन दो सालों में भी उन्होंने कई ऐसे काम किया जिसे आज भी याद किया जाता है।
  • उन्होंने बिहार में मैट्रिक तक की पढ़ाई को मुफ्त कर दिया।
  • सभी विभागों में हिंदी में काम किया जाना अनिवार्य किया।

कर्पूरी ठाकुर के बारे में कहीं ऐसी बात ऐसी बातें कही जाती है जो उन्हें आज के राजनीतिक नेताओं से बिल्कुल अलग करता है। एक ईमानदार एवं कर्मठ नेता के रूप में याद किए जाते हैं।  कुछ कहानियां उनके बारे में है जो मैं आपसे शेयर कर रहा हूं। इन कहानियों को जानकर आप उमके व्यक्तित्व के बारे में आसानी से समझ सकते हैं.

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Karpoori Thakur की सादगी एवं ईमानदारी 

  •  70 के दशक में बिहार सरकार द्वारा विधायकों एवं पूर्व विधायकों के निजी आवास के लिए कीमत में जमीन आवंटित कर रही थी। उसे समय उन्हें के पार्टी के एक विधायक ने स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर जी से कहा था आप भी जमीन आवंटन के लिए अप्लाई कर दीजिए। कर्पूरी ठाकुर ने साफ मना कर दिया था कहा था मुझे सस्ती जमीन नहीं चाहिए। जब विधायक ने उनसे कहा आप जब ना रहेंगे तो आपके बच्चे कहां जाएंगे? कर्पूरी ठाकुर का जवाब था कि बच्चे गांव में जाकर रहेंगे।
  • उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ नेता हेमवती नंदन बहुगुणा ने अपने संस्मरण में Karpoori Thakur की सादगी का बहुत ही इमानदारी से वर्णन किया है। उन्होंने एक वाकया बताते हुए लिखा है कि हरियाणा के मुख्यमंत्री देवीलाल ने पटना के अपने ही एक मित्र से कहा था कि जब कर्पूरी ठाकुर आपसे 5-10 हजार मांगे तो दे देना। आप जो भी उन्हें दोगे मेरे ऊपर तुम्हारा कर्ज रहेगा। जब कुछ दिन बाद देवी लाल जी ने अपने मित्र से पूछा भाई कर्पूरी जी को कुछ दिए हो? मित्र ने जवाब दिया था कि कर्पूरी जी जी कुछ मांगते ही नहीं हैं।
  • वैसे ही उनकी सादगी की एक और कहानी है । बात 80 के दशक की है। समय Karpoori Thakur विधानसभा में विपक्ष के नेता हुआ करते थे। विधान सभा की कार्यवाही चल रही थी। उन्होंने अपने ही दल के एक विधायक से लंच में आवास तक जाने के लिए जीप मांगी थी। विधायक ने उसी नोट पर लिखकर दे दिया मेरे जीप में तेल नहीं है। दो बार मुख्यमंत्री रहे अपने लिए कर क्यों नहीं खरीद लेते?
Karpuri Thakur in Poltics
Karpuri Thakur in Poltics ,social media
  • एक बार की बात है जब Karpoori Thakur मुख्यमंत्री थे तब उनके बहनोई उनके पास नौकरी के लिए गए थे। बहनोई ने उनसे रिक्वेस्ट किया घर मैं पैसे की बहुत दिक्कत है, परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है,हो सके तो नौकरी लगवा दीजिए ताकि परिवार का भरण पोषण हो सके। कर्पूरी ठाकुर यह बात सुनकर बहुत दुखी हुए। फिर काफी सोचते हुए उन्होंने जब से ₹50 निकाला और उसे अपने बहनोई को दे दिए। उन्होंने कहा कि जो इस पैसे से उस्तरा  और कैंची खरीद कर अपना पारिवारिक पेशा शुरू करो। अगर कर्पूरी ठाकुर चाहते तो उन्हें तुरंत नौकरी मिल सकती थी। लेकिन यह उनकी ईमानदारी का बहुत बड़ा सबूत है।

1988 में कर्पूरी ठाकुर का निधन हो गया था लेकिन उनके द्वारा किए गए कामों को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। आज भी बिहार में उन्हें काफी सम्मान के साथ याद किया जाता है।

 

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